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भजन - कीर्तन - आरती - अमृत वाणी

03/09/18 • -1 min

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sung by Shri V N Shrivastav 'Bhola', Family and Friends
सर्वशक्तिमते परमात्मने श्री रामाय नम: (७)
(राम-कृपा अवतरण)
परम कृपा सुरूप है, परम प्रभु श्री राम ।
जन पावन परमात्मा, परम पुरुष सुख धाम ।। १ ।।
सुखदा है शुभा कृपा, शक्ति शान्ति स्वरूप ।
है ज्ञान आनन्द मयी, राम कृपा अनूप ।। २ ।।
परम पुण्य प्रतीक है, परम ईश का नाम ।
तारक मंत्र शक्ति घर, बीजाक्षर है राम ।। ३ ।।
साधक साधन साधिए, समझ सकल शुभ सार ।
वाचक वाच्य एक है, निश्चित धार विचार ।। ४ ।।
मंत्रमय ही मानिए, इष्ट देव भगवान् ।
देवालय है राम का, राम शब्द गुण खान ।। ५ ।।
राम नाम आराधिए, भीतर भर ये भाव ।
देव दया अवतरण का, धार चौगुना चाव ।। ६ ।।
मन्त्र धारणा यों कर, विधि से ले कर नाम ।
जपिए निश्चय अचल से, शक्ति धाम श्री राम ।। ७ ।।
यथा वृक्ष भी बीज से, जल रज ऋतु संयोग ।
पा कर, विकसे क्रम से, त्यों मन्त्र से योग ।। ८ ।।
यथा शक्ति परमाणु में, विद्युत् कोष समान ।
है मन्त्र त्यों शक्तिमय, ऐसा रखिए ध्यान ।। ९ ।।
ध्रुव धारणा धार यह, राधिए मन्त्र निधान ।
हरि-कृपा अवतरण का, पूर्ण रखिए ज्ञान ।। १० ।।
आता खिड़की द्वार से, पवन तेज का पूर ।
है कृपा त्यों आ रही, करती दुर्गुण दूर ।। ११ ।।
बटन दबाने से यथा, आती बिजली धार ।
नाम जाप प्रभाव से, त्यों कृपा अवतार ।।१२ ।।
खोलते ही जल नल ज्यों, बहता वारि बहाव ।
जप से कृपा अवतरित हो, तथा सजग कर भाव ।। १३ ।।
राम शब्द को ध्याइये, मन्त्र तारक मान ।
स्वशक्ति सत्ता जग करे, उपरि चक्र को यान ।। १४ ।।
दशम द्वार से हो तभी, राम कृपा अवतार ।
ज्ञान शक्ति आनन्द सह, साम शक्ति संचार ।। १५ ।।
देव दया स्वशक्ति का, सहस्र कमल में मिलाप ।
हो सत्पुरुष संयोग से, सर्व नष्ट हों पाप ।। १६ ।।
(नमस्कार सप्तक)
करता हूं मैं वन्दना, नत शिर बारम्बार ।
तुझे देव परमात्मन्, मंगल शिव शुभकार ।। १ ।।
अंजलि पर मस्तक किये, विनय भक्ति के साथ ।
नमस्कार मेरा तुझे, होवे जग के नाथ ।। २ ।।
दोनों कर को जोड़ कर, मस्तक घुटने टेक ।
तुझ को हो प्रणाम मम, शत शत कोटि अनेक ।। ३ ।।
पाप-हरण मंगल-करण, चरण शरण का ध्यान ।
धार करूँ प्रणाम मैं, तुझ को शक्ति-निधान ।। ४ ।।
भक्ति-भाव शुभ-भावना, मन में भर भरपूर ।
श्रद्धा से तुझ को नमूँ, मेरे राम हजूर ।। ५ ।।
ज्योतिर्मय जगदीश हे, तेजोमय अपार ।
परम पुरुष पावन परम, तुझ को हो नमस्कार ।। ६ ।।
सत्यज्ञान आनन्द के, परम धाम श्री राम ।
पुलकित हो मेरा तुझे होवे बहु प्रणाम ।। ७ ।।
(प्रात: पाठ)
परमात्मा श्री राम परम सत्य, प्रकाश रूप,
परम ज्ञानानन्दस्वरूप, सर्वशक्तिमान्,
एकैवाद्वितीय परमेश्वर, परम पुरुष,
दयालु देवाधिदेव है, उसको बार-बार
नमस्कार, नमस्कार, नमस्कार, नमस्कार ।।
(अमृत वाणी)
रामामृत पद पावन वाणी,
राम नाम धुन सुधा समानी ।
पावन पाठ राम गुण ग्राम,
राम राम जप राम ही राम ।।१ ।।
परम सत्य परम विज्ञान,
ज्योति-स्वरूप राम भगवान् ।
परमानन्द, सर्वशक्तिमान्,
राम परम है राम महान् ।।२ ।।
अमृत वाणी नाम उच्चारण,
राम राम सुखसिद्धि-कारण ।
अमृत-वाणी अमृत श्री नाम,
राम राम मुद मंगल-धाम ।।३ ।।
अमृतरूप राम-गुण गान,
अमृत-कथन राम व्याख्यान ।
अमृत-वचन राम की चर्चा,
सुधा सम गीत राम की अर्चा ।।४ ।।
अमृत मनन राम का जाप,
राम राम प्रभु राम अलाप ।
अमृत चिन्तन राम का ध्यान,
राम शब्द में शुचि समाधान ।।५ ।।
अमृत रसना वही कहावे,
राम राम जहाँ नाम सुहावे ।
अमृत कर्म नाम कमाई,
राम राम परम सुखदाई ।।६ ।।
अमृत राम नाम जो ही ध्यावे,
अमृत पद सो ही जन पावे ।
राम नाम अमृत-रस सार,
देता परम आनन्द अपार ।।७ ।।
राम राम जप हे मना,
अमृत वाणी मान ।
राम नाम में राम को,
सदा विराजित जान ।।८ ।।
राम नाम मुद मंगलकारी,
विध्न हरे सब पातक हारी ।
राम नाम शुभ शकुन महान्,
स्वस्ति शान्ति शिवकर कल्याण ।।९ ।।
राम राम श्री राम विचार,
मानिए उत्तम मंगलाचार ।
राम राम मन मुख से गाना,
मानो मधुर मनोरथ पाना ।।१० ।।
राम नाम जो जन मन लावे,
उस में शुभ सभी बस जावे ।
जहां हो राम नाम धुन-नाद,
भागें वहां से विषम विषाद ।।११ ।।
राम नाम मन-तप्त बुझावे,
सुधा रस सींच शांति ले आवे ।
राम राम जपिए कर भाव,
सुविधा सुविधि बने बनाव ।।१२ ।।
राम नाम सिमरो सदा,
अतिशय मंगल मूल ।
विषम-विकट संकट हरण,
कारक सब अनुकूल ।।१३ ।।
जपना राम राम है सुकृत,
राम नाम है नाशक दुष्कृत ।
सिमरे राम राम ही जो जन,
उसका हो शुचितर तन मन ।।१४ ।।
जिसमें राम नाम शुभ जागे,
उस के पाप ताप सब भागे ।
मन से राम नाम जो उच्चारे,
उस के भागें भ्रम भय सारे ।।१५ ।।
जिस में बस जाय राम सुनाम,
होवे वह जन पूर्णकाम ।
चित्त में राम राम जो सिमरे,
निश्चय भव सागर से तरे ।।१६ ।।
राम सिमरन होवे सहाई,
राम सिमरन है सुखदाई ।
राम सिमरन सब से ऊंचा,
राम शक्ति सुख ज्ञान समूचा ।।१७ ।।
राम राम ही सिमर मन,
राम राम श्री राम ।
राम राम श्री राम भज,
राम राम हरि-नाम ।।१८ ।।
मात-पिता बान्धव सुत दारा,
धन जन साजन सखा प्यारा ।
अन्त काल दे सके न सहारा,
राम नाम तेरा तारन हारा ।।१९ ।।
सिमरन राम नाम है संगी,
सखा स्नेही सुहृद् शुभ अंगी ।
युग युग का है राम सहेला,
राम भक्त नहीं रहे अकेला ।।२० ।।
निर्जन वन विपद् हो घोर,
निबड़ निशा तम सब ओर ।
जोत जब राम नाम ...

03/09/18 • -1 min

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